कौमी नुमाईन्दा कौसिल का पैगाम मुस्लिम वोटर्स के नाम

देश की राजनीती से मुस्लमानो की बेदखली व बे वज़नी की जो सूरत नज़र आ रही है उसी के मद्दे नज़र हालात के तक़ाज़े के अनुसार आज हम यह कहने पर मजबूर हैं के मुस्लमान का राजनीती माज़ी का इतिहास झूठे सेकुलरिज्म और पुरफ़रेब के सपनो की भेंट चढ़गया, मुस्लमान ने अपना क़ीमती वोट सेकुलरिज्म को बचाने और साम्प्रदाइक फाशिष्ट ताक़तों को रोकने के लिए कुर्बान कर दिया लेकिन झूठे सेकुलरिज्म और सेक्युलर राजनीतक दलों के दोगलेपन के कारन मुस्लमान को इस में नाकामी हुई, जिस का परिणाम यह रहा के देश में हज़ारों साम्प्रदाइक फसाद, बे गुनाहों को जेल, मोब्लिंचिंग जैसी आपराधिक घटनाओं का जनम हुआ मुस्लमान जुल्म की चक्की में पिस्ता रहा और सेक्युलर राजनीतक दल मुस्लमानो के सेक्युलर वोट बटोरते रहे, मुस्लमानो के साथ समाजी व सियासी नाइंसाफ़ी आज अपने चरम सीमा पर है, मुस्लमान को सेकुलरिज्म और विकास के नाम पर ठगा गया आज इस बात का एहसास हर मुस्लिम को हो रहा है, छलकपट की इस राजनीती से मुस्लमान का बड़ा नुकसान हुआ है, देश की राजनीती में मुससल्मानो की भागीदार दिन बा दिन घटती जा रही है, आज हालत यहाँ तक पोहोच चुकी है के मुस्लिम बहुल इलाक़ों से भी सेक्युलर कही जाने वाली राजनीतीक पार्टियां भी चुनाव में मुस्लिम उमीदवार न देकर गैर मुस्लिम उमीदवार को टिकट दे रही हैं और कारन यह बताया जा रहा है के मुस्लिम उमीदवार को गैर मुस्लिम यानि हिन्दू वोटरों की अधिकतर संख्या वोट नहीं देती मुस्लिम उमीदवार चुनाव हार जाता है, यह बड़ी ही ज़िल्लत वाला भेद भाव वाला सलूक है इस की जितनी निंदा की जाये कम है, जब के मुस्लिम वोटर्स बिना किसी भेद भाव के सब को अपना वोट देता है, अब सवाल यह यह खड़ा होता है के यह कैसा सेकुलरिज्म है जहाँ मुस्लिम वोट लिया तो जाता है पर मुस्लिम उमीदवर को वोट दिया नहीं जाता, इसी कारन आज देश की राजनीती से मुस्लमानो का सफाया हो गया है, इस एकतरफा सेकुलरिज्म के जादुई जाल में मुस्लमान उलझ कर रह गया है आज हमें इस कड़वी सच्चाई को मान लेना चाहिए की गैर मुस्लिम की एक बड़ी संख्या मुस्लिम उम्मीदवार को वोट नहीं देती यह एक तल्ख हकीकत है, हमें राजनितिक सूझ बूझ के साथ अपने लिए नई राहें तलाश करना ही होंगी युही वक़्त का तक़ाज़ा है, आज जब हमारा अपना वजूद अपनी मज़हबी पहचान को बाकी रखना मुश्किल हो रहा है ऐसे में तरक़ी विकास जैसे खूबसूरत व दिलकश शब्द हमारे लिए बे मानी हो कर अपनी एहमियत व दिलकश खो चुके हैं अब हमें इन खूबसूरत शब्दों से धोका नहीं खाना चाहिए, आज हमारी लड़ाई अपनी मज़हबी पहचान के साथ अपने वजूद को क़ायम रखने की है अगर हम कामियाबी हासिल करना चाहते हैं तो हमें झूठे सेकुलरिज्म और विकास के जादूई जल को तोड़न ही होगा वार ना हमारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों में इनही सब हालात के तहत क़ौमी नुमाईन्दा कौंसिल प्लेटफॉर्म को क़ायम किया गया और क़ौमी नुमाईन्दा तहरीक शरू की गई, हमारा एक ही मक़सद है के देश की राजनीती में मुस्लमानो की घटती हुई भागीदारी को हर मुमकिन बढ़वा दिया जाये ताकि विधान सभा और राज्यसभा में नगरपालिका में हमारा नुमाईन्दा भी मौजूद रहे, देश की मुस्लिम जनसंख्या के आधार पर हमें भी अपनी पर्सेर्टेज के मुताबिक़ देश की राजनीती में अपनी भूमिका निभाने का अवसर मिलना चाहिए यह हमारा अधिकार है, क़ौमी नुमाईन्दा कौंसिल इसी बात को लेकर फिकरमंद है, याद रखे हमे अपनी मज़हबी पहचान के साथ अपने वजूद को बरक़रार रखने की लड़ाई लड़ना है यही वक़्त की ज़रुरत है। लिहाज़ा हम सभी मुस्लिम मतदाताओं से विनर्म बिनती करते हैं के आप अपना क़ौमी वोट सिर्फ अपने क़ौमी नुमाईदे को ही दें और अपने समाज की राजनीतिक ताक़त को मज़बूत करें अगर आप ने ऐसा न किया तो आप का ही समाज कमज़ोर व लाचार होगा आप खुद को हारा हुवा महसूस करेंगे, इस बात को खास तोर से धियान में रखे के आप के चुनावी उमीदवर को गैर क़ौम के वोटर्स की बड़ी संख्या तासूब की बुनियाद पर वोट नहीं देती लिहाज़ा आप की ज़िम्मेदारी बनती है के आप भी अपना वोट अपने क़ौमी नुमाईदे को ही दे, किसी गैर को देकर खुद को अपने आप को अपने समाज को सियासी तोर पर कमज़ोर न करे रहनुमा उसूल अपनाएं किसी अपने को ही अपना रहनुमा बनायें कामियाबी आप के क़दम चूमेगी इंशाअल्लाह अब भी मौक़ा है अंधेरों का करो कोई इलाज वरना यह नस्ल उजालों को तारस जाएगी, अतीकुर रेहमान सिद्दीकी व्हाटस एपन. 9653328354 8879209849 तंज़ीम से जुड़ें और अपने समाज को मजबूत करें


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